Response to proposed amendments
9 July 2013
Press release
National civil society and the Christian community have condemned proposals to amend the already draconian Freedom of Religion Act by giving extraordinary powers to the administration to decide on religious choices of the citizens. The amendments will also make religious minorities even more vulnerable to attack from extremist fundamentalist forces such as members of the Hindutva Sangh Parivar.
The amendments have not been introduced in the state assembly, which has begun its new session. But available information says the amendments include punishments of 4 years imprisonment and one lakh, prior permission from the District Magistrate for even voluntary conversion, and police inquires before granting the permission.
Community leaders said they will protest peacefully across the state if the black law is made more vicious. They will also take legal recourse to challenge the law as unconstitutional.
The Himachal Pradesh High court recently similar struck down provisions in the state law for prior intimation or permission from authorities. These regulations anyway violate national and international guarantees of freedom of faith of citizens. It is tantamount to government interference in the constitutional guarantee on freedom of religion.
Christian community is particularly incensed and concerned at the unbridled power the amendments will give to district officials and police. We have often seen the bigotry of officials in the district administration and police in rural areas and small towns who often connive with the local Hindutva elements for attacks on home churches and harassment of pastors. As it is, the existing laws encourage Hindutva elements to carry on hate campaigns against the Christian community, its pastors, religious workers and common people. The state every year records many cases of violence against Christians. Similar is the experience of the community in every other state where such black laws exist.
The Christian religion is against forcible or fraudulent religion and has reportedly said that such “conversions” are against the basic teachings of Christ. No pastor can forcibly or fraudulently convert any person.
There is therefore absolutely no reason for the state government to enact such amendments. The state government has also not been able to give any convincing reasons why suddenly it sees the necessity of such a law.
प्रस्तावित संशोधनों के जवाब
9 जुलाई 2013
प्रेस विज्ञप्ति
पहले से ही कठोर धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन करने के प्रस्ताव की राष्ट्रीय नागरिक समाज और ईसाई समुदाय के नागरिकों ने निंदा की है.
यह संशोधन प्रशासन को असाधारण शक्तियां देकर नागरिकों के धार्मिक विकल्प पर फैसला करने के बुनियादी अधिकार में हस्तक्षेप करता है. यह संशोधन उग्रवादी कट्टरपंथी ताकतों जैसे की हिंदुत्व संघ परिवार के सदस्यों को धार्मिक अल्पसंख्यकों को और भी सताने के लिए और उन पर हमला करने के लिए बढ़ावा देगा.
हालांकि संशोधन राज्य विधानसभा के इस नए सत्र में अभी पेश नहीं किया गया है, लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार संशोधन में प्रावधान है की स्वैच्छिक मतान्तरण के लिए भी जिला मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति, और पुलिस पूछताछ आवश्यक है नहीं तो 4 साल की कारावास की सजा और एक लाख रुपया जुर्माना भी देना होगा.
समुदाय के नेताओं कहा है की अगर इस काले कानून को और अधिक शातिर किया जाता है तो वे राज्य भर में शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने यह भी कहा है की इस कानून को चुनौती देने के लिए और इसे असंवैधानिक करार देने के लिए कानूनी सहारा लिया जाएगा.
हाल ही में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसी तरह पूर्व सूचना या अधिकारियों से अनुमति के प्रावधानों को राज्य के कानून में से ख़ारिज किया था. वैसे भी इन नियमों से नागरिकों के विश्वास की स्वतंत्रता की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गारंटी का उल्लंघन होता है. यह धर्म की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी पर सरकार के हस्तक्षेप करने के लिए बराबर है.
यह संशोधन जिस तरह जिला अधिकारियों और पुलिस को निरंकुश सत्ता प्रदान करेगा उससे ईसाई समुदाय विशेष रूप से नाराज और चिंतित है. हमने अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में गृह कलीसियाओं, चर्चों और पादरियों के उत्पीड़न पर हमलों के मामलों में जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों के पक्षपात और कट्टरता को देखा है और ये पाया है की वे अक्सर स्थानीय हिंदुत्ववादी तत्वों के साथ गुप्त रूप से सहयोग करते हैं या उनको अनदेखा कर देते हैं. वैसे भी, मौजूदा कानून हिंदुत्व तत्वों को प्रोत्साहित करते हैं की वे ईसाई समुदाय, उनके पादरियों, धार्मिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों के खिलाफ नफरत का अभियान जारी रखें. राज्य में हर साल ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के कई मामलों का रिकॉर्ड है. इसी प्रकार का अनुभव हर उस राज्य में है जहाँ इस तरह के काले कानूनों का अस्तित्व है.
ईसाई धर्म जबरन या धोखाधड़ी द्वारा धर्म परिवर्तन के खिलाफ है और हमेशा ये कहा भी है कि इस तरह के "मतान्तरण" मसीह की बुनियादी शिक्षाओं के खिलाफ हैं. कोई पादरी जबरन या धोखे से किसी भी व्यक्ति का धर्मं नहीं बदल सकता है.
इसलिए इस तरह के संशोधन को अधिनियमित करने के लिए राज्य सरकार के पास कोई कारण नहीं है. राज्य सरकार भी कोई ठोस कारण नहीं दे पाई है की अचानक एक ऐसे कानून की जरूरत उसे क्यों दिखाई पड़ती है.